पेंशनधारको के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि यदि नियोक्ता द्वारा वेतन निर्धारण में गलती हुई है, तो सेवानिवृत्त कर्मचारी को दी गई अतिरिक्त राशि को सेवानिवृत्ति लाभों से वसूल नहीं किया जा सकता। यह निर्णय जस्टिस हरीश टंडन और जस्टिस प्रसेनजीत बिस्वास की खंडपीठ ने दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
कर्मचारी को 26 मार्च 1996 को रामकृष्ण मिशन शिल्पपीठ, बेलघरिया, कोलकाता में लेक्चरर के रूप में नियुक्त किया गया।उन्होंने 21 दिसंबर 2013 को सेवानिवृत्ति प्राप्त की। कर्मचारी को कैरियर एडवांसमेंट स्कीम (CAS) के तहत 2001 और 2006 में वेतन लाभ दिए गए। बाद में नियोक्ता ने पाया कि कर्मचारी को CAS का लाभ देने में त्रुटि हुई थी, क्योंकि उनके पास नियुक्ति के समय एम.टेक की डिग्री नहीं थी।
नियोक्ता का निर्णय:
नियोक्ता ने इस त्रुटि का हवाला देते हुए सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारी से अतिरिक्त भुगतान की राशि वसूलने का आदेश दिया।
कर्मचारी का पक्ष
कर्मचारी ने तर्क दिया कि CAS के तहत लाभ दिए जाने के समय सभी अधिकारियों ने इसे मंजूरी दी थी और किसी भी आपत्ति का उल्लेख नहीं किया। सेवानिवृत्ति के बाद राशि की वसूली को उन्होंने अनुचित और अन्यायपूर्ण बताया।
न्यायालय का अवलोकन और निर्णय
रफीक मसीह मामले का अनुप्रयोग:
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब राज्य बनाम रफीक मसीह के मामले में कहा था कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों से अतिरिक्त राशि की वसूली अनुचित और गैर-कानूनी होगी। यह मामला इसी सिद्धांत के अंतर्गत आता है।
अत्यधिक कठिनाई का सिद्धांत:
कोर्ट ने माना कि सेवानिवृत्ति के बाद की गई वसूली से कर्मचारी को गंभीर कठिनाई होगी, जिसे अन्यायपूर्ण संवर्धन माना जाएगा। नियोक्ता यह साबित नहीं कर सका कि कर्मचारी ने वेतन लाभ प्राप्त करते समय अतिरिक्त राशि की वापसी के लिए कोई वचन दिया था।
नियुक्ति में त्रुटि का जिम्मेदार नियोक्ता
कोर्ट ने कहा कि यदि वेतन निर्धारण में गलती नियोक्ता की ओर से हुई है, तो कर्मचारी को इसका जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
एकल न्यायाधीश के आदेश को बरकरार रखा गया:
हाईकोर्ट ने पाया कि एकल न्यायाधीश का आदेश सही था, जिसमें वसूली को अवैध ठहराया गया था।
न्यायालय का निष्कर्ष
नियोक्ता को वसूली का अधिकार नहीं
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि नियोक्ता के पास कर्मचारी से अतिरिक्त राशि की वसूली का कोई औचित्य नहीं है। अपीलकर्ता अधिकारियों की याचिका को खारिज कर दिया गया।
महत्वपूर्ण बिंदु
सेवानिवृत्त कर्मचारियों के अधिकार:
गलत वेतन निर्धारण के कारण भुगतान की गई अतिरिक्त राशि की वसूली सेवानिवृत्ति के बाद नहीं की जा सकती।
न्यायिक मिसाल:
यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों पर आधारित है, जिनमें रफीक मसीह और श्याम बाबू वर्मा जैसे मामलों का उल्लेख किया गया।
नियोक्ता की जिम्मेदारी:
यदि वेतन निर्धारण में गलती होती है, तो नियोक्ता को इसका जिम्मेदार माना जाएगा, न कि कर्मचारी को।
निष्कर्ष
कलकत्ता हाईकोर्ट का यह निर्णय सेवानिवृत्त कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करता है और यह सुनिश्चित करता है कि गलत वेतन निर्धारण की जिम्मेदारी नियोक्ता पर हो। यह फैसला अन्य मामलों में भी महत्वपूर्ण मिसाल साबित हो सकता है।