उमा देवी फैसले का दुरुपयोग नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने दैनिक वेतन भोगियों के नियमितीकरण का मार्ग प्रशस्त किया

नई दिल्ली, 2025: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के शोषण पर कड़ा रुख अपनाते हुए उमा देवी (2006) फैसले की गलत व्याख्या पर रोक लगाई है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि कोई कर्मचारी स्वीकृत पदों पर लंबे समय तक सेवा दे रहा है, तो उसे केवल इस आधार पर नियमितीकरण से इनकार नहीं किया जा सकता कि उसकी प्रारंभिक नियुक्ति अस्थायी थी।

क्या है पूरा मामला?

गाजियाबाद नगर निगम के बागवानी विभाग में 1998-99 से कार्यरत माली (दैनिक वेतन भोगी) कर्मचारियों ने नियमितीकरण और वैधानिक लाभों की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी।

  • इन कामगारों ने नगर निगम के तहत लगातार कार्य किया, लेकिन उन्हें नियुक्ति पत्र, न्यूनतम वेतन, वैधानिक लाभ और नौकरी की सुरक्षा नहीं मिली।
  • 2004 में उन्होंने औद्योगिक विवाद दायर किया, लेकिन 2005 में बिना किसी लिखित आदेश या मुआवजे के उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं
  • लेबर कोर्ट और हाईकोर्ट में उनके पक्ष में और खिलाफ मिले-जुले फैसले आए, जिससे मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की खंडपीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए कहा कि:

  1. उमा देवी फैसला सार्वजनिक संस्थानों को लंबे समय तक कार्यरत अस्थायी कर्मचारियों को नियमित करने से रोकने के लिए ढाल के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता
  2. नगर निगम का कार्य बारहमासी (स्थायी) प्रकृति का है, इसलिए कर्मचारियों को अस्थायी बनाए रखना शोषण के समान है।
  3. “नई भर्ती पर प्रतिबंध” का बहाना श्रमिकों को उनके अधिकारों से वंचित करने के लिए नहीं दिया जा सकता
  4. मस्टर रोल की कमी नियोक्ता की गलती है, न कि कर्मचारियों की।

न्यायालय ने दिया 6 महीने में नियमितीकरण का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने नगर निगम को छह महीने के भीतर इन कर्मचारियों के नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया

महत्वपूर्ण संदेश

  • यदि कोई कर्मचारी लंबे समय से स्थायी प्रकृति के कार्य में लगा है, तो उसका नियमितीकरण संवैधानिक अधिकार है।
  • उमा देवी फैसले का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता ताकि कर्मचारियों को नियमितीकरण और वैधानिक लाभों से वंचित रखा जाए।
  • दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के शोषण पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख भविष्य में ऐसे कर्मचारियों के लिए राहत का मार्ग प्रशस्त करता है।

यह फैसला न केवल गाजियाबाद नगर निगम के कर्मचारियों बल्कि देशभर के लाखों अस्थायी कर्मचारियों के लिए एक ऐतिहासिक निर्णय है।

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