केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि उसने वन रैंक वन पेंशन (OROP) योजना के तहत सेवानिवृत्त नियमित कैप्टनों की पेंशन में 10% बढ़ोतरी की सिफारिश को स्वीकार न करने का निर्णय लिया है। यह जानकारी अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ के समक्ष प्रस्तुत की।
केंद्र सरकार का रुख:
केंद्र ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह 10% पेंशन वृद्धि की सिफारिश को लागू नहीं करेगा। इससे स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
सेवानिवृत्त अधिकारियों का पक्ष:
सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों, जैसे एम गोपालन नायर, ने केंद्र सरकार के इस निर्णय को चुनौती देने की तैयारी शुरू कर दी है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से समय की मांग की है ताकि वे इस निर्णय के खिलाफ अपना पक्ष मजबूत कर सकें।
अगली सुनवाई:
मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होगी।
सुप्रीम कोर्ट का रुख और केंद्र पर नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को पहले ही इस मामले में 2021 से निर्णय न लेने पर फटकार लगाई थी। 2 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था। कोर्ट ने केंद्र को चेतावनी दी थी कि अगर इस मामले में जल्दी निर्णय नहीं लिया गया, तो वह 10% पेंशन वृद्धि का आदेश स्वयं जारी करेगा।
OROP योजना की चुनौतियां और विसंगतियां
योजना का उद्देश्य पूर्व सैनिकों की पेंशन को समान रैंक और सेवा अवधि के अनुसार बराबर करना है। इसे जुलाई 2014 में लागू किया गया था।
प्रमुख विसंगतियां:
पेंशन तालिका में कैप्टन और मेजर जैसे पदों के लिए सटीक आंकड़ों की कमी। इसका कारण यह है कि न्यूनतम पेंशन योग्य रैंक लेफ्टिनेंट कर्नल मानी जाती है।
समाधान के प्रयास:
2016 में रक्षा मंत्रालय ने इन समस्याओं को हल करने के लिए वन मैन ज्यूडिशियल कमेटी (OMJC) नियुक्त की थी।हालांकि, मंत्रालय ने OMJC की सिफारिशों पर कोई कार्रवाई नहीं की।
कोच्चि स्थित AFT का आदेश:
कोच्चि स्थित सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल (AFT) ने मंत्रालय को निर्देश दिया था कि वह इन विसंगतियों को समयबद्ध तरीके से हल करे। लेकिन यह मामला अभी भी लंबित है।
प्रभाव और आगे की राह
सेवानिवृत्त सैनिकों वृद्धि न होने से आर्थिक दबाव बढ़ेगा। यह OROP के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है, जिसका उद्देश्य समानता और न्याय सुनिश्चित करना था।
न्यायपालिका की भूमिका
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप सरकार पर दबाव बढ़ा सकता है।अन्य सेवानिवृत्त सैनिकों के लिए यह एक मिसाल बन सकता है।
सरकार की जवाबदेही:
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय OROP योजना में पारदर्शिता और समानता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण होगा। इससे सरकार की जवाबदेही तय होगी।
निष्कर्ष
OROP योजना के तहत पेंशन में बढ़ोतरी का मामला सिर्फ वित्तीय नहीं है, बल्कि यह पूर्व सैनिकों के सम्मान और अधिकारों से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप सरकार को संवेदनशील निर्णय लेने के लिए मजबूर कर सकता है। आगामी 12 दिसंबर की सुनवाई पर सभी की नजरें टिकी हैं, जहां उम्मीद है कि पूर्व सैनिकों के हितों के पक्ष में कोई ठोस निर्णय लिया जाएगा।
OROP का सही कार्यान्वयन केवल पूर्व सैनिकों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश की सेना के सम्मान का विषय है।