ईपीएस 95 पेंशन (EPS 95 Pension) को लेकर आंदोलन अब सियासी रूप ले चुका है। केंद्र सरकार के खिलाफ पेंशनर्स ने मोर्चा खोल दिया है। पेंशनभोगी सीपी तिवारी ने अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहा, “बड़े आश्चर्य की बात है कि देश की सभी राजनीतिक पार्टियां ईपीएस 95 पेंशनर्स सीनियर सिटीजन के आंदोलन को समर्थन नहीं करती हैं। इसके पीछे क्या कारण है?”
केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के लिए 50 प्रतिशत पेंशन योजना को मंजूरी दी, लेकिन प्राइवेट सेक्टर में कार्यरत या रिटायर्ड श्रमिकों के लिए सरकार ने कुछ नहीं किया है, जो कि अप्रजातांत्रिक है। ईपीएस 95 पेंशनर्स अपने अधिकारों के लिए देशभर में संघर्ष कर रहे हैं।
पेंशनर्स का आरोप है कि सीबीटी ट्रस्ट और उनकी मजदूर यूनियन के सदस्योंने सरकार के साथ मिलकर उनका पैसा सरकार के पास जमा कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें केवल 1.16 प्रतिशत पेंशन मिलती है। जबकि सरकार के पास दस लाख करोड़ रुपये जमा हैं। 2014 में कोशियारी समिति ने 3000 रुपए पेंशन बढ़ाने की सिफारिश की थी, लेकिन वह भी नहीं दी गई। पेंशनर्स का कहना है कि उन्हें कम से कम 7500 रुपये पेंशन + महंगाई भत्ता मिलना चाहिए, साथ ही पिछले दस साल का ब्याज भी मिलना चाहिए।
सोशल मीडिया पर पेंशनर्स ने उठाया मुद्दा
सोशल मीडिया पर सीजी तिवारी के पोस्ट पर विलास रामचंद्र गोगावाले ने भी कमेंट किया, जिसमें उन्होंने कहा, “सीपी तिवारी बिल्कुल सही हैं। पूरी जिम्मेदारी सीबीटी ट्रस्ट की है। उन्होंने हमारी राशि सरकार के पास जमा की, लेकिन इसके लिए कोई विरोध नहीं किया।”
न्यूनतम पेंशन की मांग
पेंशनर्स की मुख्य मांग है कि उन्हें 7500 रुपये से कम पेंशन न मिले, साथ ही महंगाई भत्ते का भी लाभ मिले, जो कि उनकी जीवनशैली में सुधार कर सके।
यह संघर्ष पेंशनभोगियों के हक की लड़ाई बन चुकी है, और वे सरकार से जल्द समाधान की उम्मीद कर रहे हैं।
पेंशनभोगियों की इस लंबी लड़ाई में केंद्र सरकार की चुप्पी और पेंशनर्स के प्रति लापरवाही ने उन्हें और भी तिलमिलाया है। उनका कहना है कि सरकार ने 2014 में कोशियारी समिति की सिफारिशों को लागू नहीं किया और उन्हें लंबे समय से लंबित बकाया राशि की कोई जानकारी नहीं दी। इस प्रकार की स्थिति पेंशनभोगियों के लिए और भी चिंताजनक हो गई है, जो अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव में हैं और जिन्हें आर्थिक सुरक्षा की सबसे अधिक जरूरत है।
राजनीतिक दलों की चुप्पी पर सवाल
सीपी तिवारी का कहना है कि देश की सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियां पेंशनर्स के आंदोलन को नजरअंदाज कर रही हैं, जबकि यह आंदोलन सीनियर सिटीजन की बुनियादी जरूरतों और उनके अधिकारों की रक्षा की दिशा में है। पेंशनर्स का यह सवाल है कि अगर केंद्र सरकार और राजनीतिक दल उनके पक्ष में नहीं खड़े होंगे, तो उन्हें किससे उम्मीद करनी चाहिए?
पेंशनर्स की आंदोलन में बढ़ती धार
इस स्थिति में पेंशनभोगियों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। वे लगातार विभिन्न माध्यमों से अपनी आवाज उठा रहे हैं और सरकार से जल्द समाधान की मांग कर रहे हैं। पेंशनर्स का कहना है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी जातीं, तो वे अपने आंदोलन को और तेज करेंगे और देशभर में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करेंगे।
आगे की रणनीति
पेंशनर्स ने अब एक और कदम बढ़ाते हुए यह निर्णय लिया है कि वे इस मुद्दे को लेकर अगले कुछ महीनों में बड़ी संख्या में प्रदर्शन करेंगे और सामाजिक मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सरकार के खिलाफ आवाज उठाएंगे। इसके अलावा, वे न्यायालयों में भी इस मामले को लेकर याचिका दाखिल करने की सोच रहे हैं ताकि सरकार को कानूनी तौर पर जवाबदेह ठहराया जा सके।
निष्कर्ष
इस समय पेंशनभोगियों का यह आंदोलन केवल पेंशन बढ़ोतरी की मांग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन नागरिकों की आर्थिक सुरक्षा और सम्मान की रक्षा की भी लड़ाई बन चुका है, जिनका पूरी जिंदगी योगदान रहा है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह पेंशनर्स की सही मांगों को शीघ्र मंजूर करे और उन्हें न्याय दिलाए। पेंशनर्स का कहना है कि वे जब तक पूरी पेंशन और बकाया राशि की संतुष्टि प्राप्त नहीं कर लेते, तब तक उनका संघर्ष जारी रहेगा।
आखिरकार, यह सवाल उठता है कि क्या सरकार पेंशनभोगियों की गंभीरता और उनकी हालत को समझते हुए उनकी समस्याओं का समाधान करेगी या इस मुद्दे को और अधिक जटिल बना देगी।